मिर्झा गालिब यांची एक अत्यंत सुरेख व मनाला भावणारी गझल...
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है?
हमको उनसे वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है।
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है।
हम हैं मुश्ताक़ और वो बेज़ार
या इलाही ये माजरा क्या है।
या इलाही ये माजरा क्या है।
जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद
फिर ये हंगामा ऐ ख़ुदा क्या है।
फिर ये हंगामा ऐ ख़ुदा क्या है।
जान तुम पर निसार करता हूँ
मैंने नहीं जानता दुआ क्या है।
मैंने नहीं जानता दुआ क्या है।
-मिर्झा गालिब
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